दोस्तो, एक ग़ज़ल आपके हवाले
रिश्ता तमाम उम्र रहा तिश्नगी के साथ
टूटा हुआ करार हूँ मैं ज़िंदगी के साथ
मुझसे न वानगी ए सफर पूछ नाखुदा
काटी है मैंने उम्र तो ठहरी नदी के साथ
उसपे यकीन करके किया फैसला जो मैं
जीता रहा हूँ आजतलक नाख़ुशी के साथ
बावस्तगी न पूछ है दैरो हरम से क्या
रिश्ता मेरा अबूझ रहा वंदगी के साथ
दस्तूर इस जहाँ का न सीखा तो ये हुआ
सबकुछ लुटा दिया बड़ी शाइस्तगी के साथ