🍄🌟🍄🌟🍄🌟🍄🌟🍄🌟🍄
‼🔴श्रीरामचरितमानस चिंतन🔴‼
۞ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۞
दिनाँक:- 12-08-2018,रविवार
‼हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे‼
‼हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे‼
🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵
🌞 प्रातः वंदन 🙏🏻 जय जय सियाराम 🚩
🗣भगवान् राम प्रत्येक को सुलभ हैं, वे प्रत्येक के अपने हैं।
भगवान् राम यदि प्रत्येक के अपने हैं, तब तो उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए। पर गोस्वामीजी एक विलक्षण बात कहते हैं और वह यह कि हमारे राम निष्पक्ष नहीं हैं। यह कैसी उल्टी बात गोस्वामीजी ने कह दी ? पक्षपात की तो सर्वत्र निन्दा की जाती है। जो पक्षपात करता है, वह अन्याय को प्रश्रय देता है। अतः निष्कर्ष निकला कि व्यक्ति को निष्पक्ष होना चाहिए। पर *सत्य यह है कि निष्पक्षता की सराहना तो होती है, लेकिन निष्पक्षता के प्रति किसी के मन में राग उत्पन्न नहीं होता। निष्पक्षता मनुष्य के अन्तःकरण में आदर को जन्म तो देती है, पर अपनत्व और प्रेम को जन्म नहीं देती।* इसीलिए गोस्वामीजी भगवान राम के चरित्र में निष्पक्षता के दर्शन के बदले जो पक्षपात का दर्शन देते हैं, उसमें एक नया रस उत्पन्न हो गया। *प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्षता चाहता है, पर किसके लिए ? अपने लिए नहीं, दूसरे के लिए।* गोस्वामीजी लिखते हैं, जब भगवान् राम पुष्पवाटिका में पहुँचे, तो उनके माथे पर मोरपंख था। वहाँ तो कई प्रकार के पक्षी थे -- चातक थे, कोकिल थे, कीर और चकोर थे तथा मोर भी थे
चातक कोकिल कीर चकोरा।
कूजत बिहग नटत कल मोरा।।
पर भगवान् राम के माथे पर न तो चातक का पक्ष बाँधा गया, न कोकिल का, न कीर का और न चकोर का ; केवल मोर का पक्ष बाँधा गया। इसमें संकेत क्या था ? यह कि *ईश्वर को पक्षधर बनाना है, लेकिन ऐसा पक्षधर कि जिस पक्षधरता में किसी को अन्याय की अनुभूति न हो।* और इस पक्षधरता का विचित्र दर्शन क्या है ? पक्षपात की निन्दा तो सभी लोग करते हैं, लेकिन *कोई भी व्यक्ति अपने प्रति पक्षपात की निन्दा नहीं करता, दूसरे के प्रति यदि पक्षपात हो तो ही व्यक्ति निन्दा करता है। यह मानवीय प्रकृति है।* जब भी हम कहते हैं कि लोग बड़े अन्यायी हैं, बड़े पक्षपाती हैं, तब कोई यह नहीं कहता कि मेरा किसी ने पक्ष लिया इसलिए वह अन्यायी है। उसका अभिप्राय यही होता है कि उसकी तुलना में दूसरे के प्रति पक्षपात क्यों किया गया ?
गोस्वामीजी ने कहा कि ईश्वर को पक्षधर तो बनाना है, पर ऐसा पक्षधर जिसमें सबको आनन्द आए और जिस पक्षधरता की कोई निन्दा न करे। अगर कहें कि ईश्वर चातक-पक्षधर हैं, कोकिल-पक्षधर हैं, अथवा चकोर-पक्षधर हैं, तो लोगों को लगेगा कि इससे हमें क्या लेना देना है। पर यदि कोई कहे कि ईश्वर हमारे पक्षधर हैं, तो अपनापन आ जाता है। भगवान् राम की पक्षधरता की विशेषता यह है कि जो भी भगवान् राम को देखता है, उसको यही लगता है कि राम तो मोर-पक्षधर है, दूसरे किसी के पक्षधर नहीं। यह बड़ी चतुराई का दर्शन है। *यदि जीवन ऐसा बनाया जा सके कि प्रत्येक व्यक्ति को यही लगी कि यह हमारे पक्षपाती हैं, तो ऐसा व्यक्ति समाज में जितना प्रिय होगा उतना कोई हो ही नहीं सकता।
निष्पक्षता से ऊँचा दर्शन पक्षपात का दर्शन है।* भगवान राम के चरित्र का कौशल यह है कि उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे निष्पक्ष हैं। उन्हें देखकर यही लगता है कि वे बड़े पक्षपाती हैं। और आनन्द की बात यह है कि सभी कहते हैं कि प्रभु मेरे पक्षपाती हैं। जब भगवान ऋषि-मुनियों के यहाँ जाते हैं, तो मुनियों को लगता है कि इनके अन्तःकरण में हमारे प्रति सर्वाधिक आदर-भाव है और जब भगवान कोल-किरातों से मिलते हैं, तो उनको प्रभु में इतने अपनत्व की अनुभूति होती है कि उन्हें लगता है कि ये हमारे अपने ही हैं। अतः यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि वे ज्ञानियों के हैं या भक्तों के अथवा अनपढ़ ग्रामीणों के। उसी दर्शन का गोस्वामीजी ने आदि से अन्त तक अपनी अनोखी पद्धति से निर्वाह किया है। इसमें उनका तात्पर्य यही है कि यदि ईश्वर को पाने में भी योग्यता का बन्धन होगा अथवा ईश्वर का कोई मापदण्ड होगा कि इस प्रकार का व्यक्ति ही उसे प्राप्त कर सकता है, तब तो स्वभावतः ईश्वर सबका नहीं हो सकता और हर व्यक्ति उससे अपनत्व की अनुभूति नहीं कर सकता। इसीलिए गोस्वामीजी लिखते हैं कि
भगवान् राम से प्रत्येक व्यक्ति अपनेपन की अनुभूति कर सकता है।
-- युग तुलसी श्रीरामकिंकरजी महाराज 🌸🙏🏻
✍🏻~रामचरणानुरागी🙏🏻😊
*🙏🌞जय श्री राम🌞🙏*
*🔥‼राम शरणम ममः‼🔥*
۞ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۞
🔴☘🔴☘🔴☘🔴☘🔴☘🔴