सुनी तो होगी बातें, उडी थी जो,
बनती है कितनी आपस में।
कभी जो सिर्फ साथ दिखते थे,
निशां दिखने लगे है चाहत के॥
चला कुछ दिनो वो सब भी,
अंत मैं बस खत्म होने को॥
वो समझे, कुछ मांज़रा होगा,
मिलकर भी बात नहीं करते।
अब कौन समजाये उन सबको,
ये रिश्ते कलम-कागज के॥
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